डाक्टर्स-डे स्पेशल : बिफोर प्रिंट के पाठकों के लिए प्रस्तुत है, बर्तोल ब्रेख्त की एक कविता- डॉक्टर के नाम एक मज़दूर का ख़त

विचार

ब्रह्मानन्द ठाकुर।
बर्तोल ब्रेख्त का जन्म 1898 में जर्मनी के आगसबुर्ग प्रांत के बाबेरिया में हुआ था। बीसवीं सदी के एक प्रसिद्ध जर्मन कवि, नाटककार और नाट्य निर्देशक थे। द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद ब्रेख्त ने अपनी पत्नी हेलेन विगेल के साथ मिलकर बर्लिन एन्सेंबल नाम से एक नाट्य मंडली का गठन किया और यूरोप के विभिन्न देशों में अपने नाटकों का प्रदर्शन किया। उनकी एक कविता है- डॉक्टर के नाम एक मज़दूर का ख़त..

हमें मालूम है अपनी बीमारी का कारण
वह एक छोटा-सा शब्द है
जिसे सब जानते हैं
पर कहता कोई नहीं
जब बीमार पड़ते हैं
तो बताया जाता है
सिर्फ़ तुम्हीं (डॉक्टर) हमें बचा सकते हो
जनता के पैसे से बने
बड़े-बड़े मेडिकल कॉलेजों में
खूब सारा पैसा खर्च करके
दस साल तक
डॉक्टरी की शिक्षा पायी है तुमने
तब तो तुम हमें अवश्य अच्छा कर सकोगे।
क्या सचमुच तुम हमें स्वस्थ कर सकते हो?
तुम्हारे पास आते हैं
जब बदन पर बचे, चिथड़े खींचकर
कान लगाकर सुनते हो तुम
हमारे नंगे जिस्मों की आवाज़
खोजते हो कारण शरीर के भीतर।
पर अगर एक नज़र
शरीर के चिथड़ों पर डालो तो
वे शायद तुम्हें ज्यादा बता सकेंगे
क्यों घिस-पिट जाते हैं
हमारे शरीर और कपड़े

बस एक ही कारण है
दोनों का
वह एक छोटा-सा शब्द है
जिसे सब जानते हैं
पर कहता कोई नहीं।
तुम कहते हो कन्धे का दर्द टीसता है
नमी और सीलन की वजह से
डॉक्टर तुम्हीं बताओ
यह सीलन कहाँ से आई?
बहुत ज्यादा काम
और बहुत कम भोजन ने
दुबला कर दिया है

हमें नुस्खे पर लिखते हो
”और वज़न बढ़ाओ”
यह तो वैसा ही है
दलदली घास से कहो
कि वो खुश्क रहे।
डॉक्टर तुम्हारे पास कितना वक़्त है
हम जैसों के लिए?
क्या हमें मालूम नहीं
तुम्हारे घर के एक कालीन की कीमत
पाँच हज़ार मरीज़ों से मिली फ़ीस के बराबर है
बेशक तुम कहोगे
इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं
हमारे घर की दीवार पर
छायी सीलन भी यही कहानी दोहराती है
हमें मालूम है
अपनी बीमारी का कारण
वह एक छोटा-सा शब्द है
जिसे सब जानते हैं
पर कहता कोई नहीं
वह है ”ग़रीबी”।