उस्ताद डुमरांव से अपने वंशजो को नाता जोड़े रखने को छोड़ गए है अमिट छाप

बक्सर

उस्ताद के वंशज शहनाई वाद्य यंत्र में डुमरांव के बने बांस का चाभ करते है इस्तेमाल।उस्ताद के पोता आफाक हैदर खां ने शहनाई की विरासत को संभाल रखा है।

बक्सर,विक्रांत। बिहार प्रांत के डुमरांव नगर के हरेेक गली में जश्न के दौरान शंहनाई की मिठी स्वर लहरियों की आवाज सुनाई पड़ती थी।खुशी के मौंके पर यहां के नागरिक परपंरागत तौर पर शहनाईं के शुभ वाद्य यंत्र की आवाज सुनने व दुसरे को सुनाए जाने को अपनी शान समझते थे। बाल्य काल में बिस्मिल्ला खां व उनके पिता बचई मियां के बाराणसी चले जाने के बाद उनके चचेरे भाई पचकौड़ी मियां अपने बेटे मुन्ना खां के सहयोग से नगर में शहनाईं बजाया करते थे।

उन दिनों कला का कद्रदान डुमरंाव राज परिवार उस्ताद के परिजनों का ख्याल रखता था। बचपन में बिस्मिल्ला खां ( बचपन का नाम कमरूदद्ीन) डुमरांव नगर स्थित मौजूद बांके बिहारी के मंदिर (श्रीराधा कृष्ण मंदिर) में आरती के समय शहनाई बजाकर सुर साधना करते थे। इसी बीच संगीत की दुनिया से जुड़े मामा अली बख्श के बुलावे पर बिस्मिल्ला खां बाराणसी चले गए। शहनाई की सुर साधना के बूते प्रसिद्धि पाने के बाद उस्ताद बिस्मिल्ला खां ने अपने चचेरे भाई व मुन्ना खां को बाराणसी बुलवा लिया।

आज की तारीख में इस धरती पर न तो उस्ताद बिस्मिल्ला खां रहे और न तो उनके चचेरा भाई पचकौड़ी मियां रहे। फिर क्या उक्त लोगों के चले जाने के बाद जश्न के मौंके पर डुमरांव के नागरिकों के कानों मंें सुनाई पड़ने वाली शहनाईं की मिठी स्वर लहरियों की आवाज हमेशा के लिए लुप्त हो गई।

‘पैतृक नगर से नाता जोड़े रहने को उस्ताद छोड़ गए छाप‘
भले ही भारत रत्न उस्ताद इस दुनिया से अलविदा हो गए। पर अपने पैतृक नगर डुमरंाव से वंशजो को नाता जोड़े रहने को अमिट छाप छोड़ गए। उस्ताद व उनके पिता शहनाई वाद्य यंत्र बजाने में महत्वपूर्ण पार्ट डुमरांव के बांस का बने चाभ का ईस्तेमाल किया करते थे। इस नगर के बने चाभ का ईस्तेमाल उनके द्वारा वाद्य यंत्र शहनाई बजाने में हमेशा किया जाता था। उस्ताद के मरहूम होने के बाद भी उनके पुत्र पोता आफाक हैदर खां सहित उनके अन्य रिश्तेदारों का चाभ के लिए डुमरांव आना जाना लगा रहता है।

उस्ताद के परिजन- उस्ताद बिस्मिल्ला खां के पांच पुत्रों में मेहताब हुसैन, नईयर हुसैन एवं जामीन हुसैन दिवंगत हो चुके है। तीनों पुत्र उस्ताद के साथ शहनाई बजाया करते थे। वहीं जीवित पुत्रों में नाजीम हुसैन ने तबला वाद्यन के क्षेत्र में मशहूर है। नाजीम हुसैन अपनी कला कौशल का डुमरंाव में कई बार प्रदर्शन कर चुके है। पुत्रों में काजीम हुसैन बाराणसी शहर में व्यवसाय से जुड़े हुए है।

आज की तारीख में उस्ताद के पोता व मरहूम जामीन हुसैन के पुत्र आफाक हैदर खां अपने दादा के शहनाईं की विरासत को संभाले हुए है। उस्ताद के पोता का कथन-बाराणसी मे रहकर शहनाईं की सुर साधना में तल्लीन आफाक हैदर खां कहते है कि दादा के पैतृक नगर डुमरांव से पूरे परिवार का भावनात्मक लगाव है।डुमरंाव के नागरिक जब भी बुलाएंगे आने को तैयार है। उनके पिता शहनाईं के फनकार हैदर खां का भी वर्ष 2018 में निधन हो चुका है।