Muzaffarpur/Brahmanand Thakur: मोहन राकेश नई कहानी आंदोलन के नायक थे। उनकी कहानियां, नाटक व यात्रा वृतांत पाठकों के दिल को छू जाती हैं। जो पाठक उनकी रचनाओं को पढ़ता है वह उनके शब्दों में डूब जाता है। नूतन साहित्यकार परिषद के अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने मोहन राकेश की जयंती समारोह को सम्बोधित करते हुए ये बातें कही। साहित्य भवन कांटी में रविवार को आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि मोहन राकेश ने अपने अल्प जीवनकाल में पाठकों पर अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने अपना जीवन अपनी शर्तों पर जिया।
लहरों के राजहंस, आषाढ़ का एक दिन, अंधेरे बंद कमरे, आधे-अधूरे उनकी कालजयी रचनाएं हैं। उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भी भोगा, जिया व अनुभव किया, उसे जस के तस अपने साहित्य में रच दिया। मोहन राकेश के जीवनवृत पर प्रकाश डालते हुए चंद्र ने कहा कि लेखन को उन्होंने जीवन में प्रथम स्थान दिया। जिंदादिली, फक्कड़पन व मस्तमौलापन उनके व्यक्तित्व का हिस्सा थी। इससे उन्होंने कभी समझौता नही किया। साहित्यकार चंद्रकिशोर चौबे ने कहा कि मोहन राकेश ने तीन व सिर्फ तीन नाटक लिखें। आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस व आधे-अधूरे।
आषाढ़ का एक दिन पर मणि कॉल ने फिल्म बनायी, जो बहुत चर्चित हुई व पुरस्कृत भी। स्वराजलाल ठाकुर ने बतलाया कि उन्होंने डायरी को भी एक विधा का दर्जा दिलाया। बसंत शांडिल्य ने यात्रा संस्मरण के पुस्तक आखिरी चट्टान तक के बारे में कहा की उनके यात्रा संस्मरण के वाक्य छोटे-छोटे व बेहद प्रभावकारी हैं। जयंती समारोह में उपस्थित साहित्यप्रेमियों ने मोहन राकेश की तस्वीर पर माल्यार्पण कर उन्हे नमन किया।