Muzaffarpur/Befoteprint. शिक्षा बजट 2023-24 पर ए.आई.डी.एस.ओ. के राष्ट्रीय महासचिव सौरव घोष ने प्रेस को बयान जारी करते हुए कहा: जहाँ तक छात्र समुदाय का सवाल है, केंद्रीय बजट 2023 पूरी तरह से निराशाजनक है। कई वर्षों से देखा जा रहा है कि शिक्षा बजट में आवंटित राशि को बढ़ा हुआ दिखाया जाता है, लेकिन कुल बजट के मुकाबले शिक्षा के लिए आवंटन का प्रतिशत कम होता जा रहा है।
एन.ई.पी-2020 को अपनाने से ठीक पहले वित्तीय वर्ष 2020-21 में शिक्षा के लिए आवंटन कुल बजट का 3,26प्रतिशत था जो बाद में 2021-22 में घटकर 2.67प्रतिशत हो गया, 2022-23 में 2,64 प्रतिशत और इस साल यह घटकर कुल बजट का 2.5 प्रतिशत (45,03,097 करोड़ में से 1,12,899 करोड़ ) रह गया है। यह भी उल्लेखनीय है कि एन.ई.पी. 2020 में शिक्षा पर जी.डी.पी. का 6 प्रतिशत आवंटित करने के बड़े दावे के बावजूद, इस वर्ष यह आवंटन जी.डी.पी. के महज 3प्रतिशत पर अटका हुआ है।
हमने यह भी देखा है कि ज्यादातर खर्च बैकलॉग और सरकारी विज्ञापनों पर किया जाता है। शिक्षकों तथा कर्मचारियों के लाखों पदों की रिक्तियों के कारण आज शिक्षा की बुरी हालत है। लाखों विद्यालयों और कॉलेजों में आवश्यक बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। ऐसी गंभीर परिस्थिति में किस क्षेत्र में कितना फंड खर्च होगा तथा जरूरतन इंफ्रास्ट्रक्चर एवं नए शिक्षकों की बहाली होगी कि नहीं, इस पर बजट पूरी तरह खामोश है। सरकार ने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि पिछले बजट में आवंटित धनराशि में से कितना खर्च किया गया है।
बजट में एनजीओ से सहयोग का प्रावधान है। इससे शिक्षा के निजीकरण तथा व्यावसायीकरण बढ़ेगा। यह बजट पूरी तरह से शिक्षा क्षेत्र के निजीकरण की योजना को दर्शाता है, जिसका हमने बारंबार एन.ई.पी.-20 के संबंध में जिक्र किया है। मौलिक अनुसंधान तथा विकास के सवाल पर बजट बिल्कुल मूक है, जबकि डिजिटलीकरण पर इसका जोर स्पष्ट है। सामान्य शिक्षा के विकास पर चुप रहते हुए कौशल शिक्षा की बात अधिक की जा रही है, जो ज्ञान सृजन के विकास में बाधक है।
ए.आई.डी.एस.ओ. इस बजट को कॉर्पोरेट हितैषी, शिक्षा विरोधी और छात्र विरोधी मानता है तथा शिक्षा प्रेमी लोगों एवं विशेष तौर पर छात्र समुदाय से अपील करता है कि वे इस बजट का विरोध करें और हमारे देश की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को नष्ट करने की मंशा रखने वाली सरकार के खिलाफ पुरजोर आंदोलन विकसित करें।