नवादा/(पंकज कुमार सिन्हा): हिंदी साहित्य के शिखर पुरुष नामवर सिंह के देहांत की खबर सुनकर नवादा प्रलेस के साथियों में शोक की लहर दौड़ गई। उनके निधन से साहित्य में जो रिक्तता आई है उसे भर पाना निकट भविष्य में काफी मुश्किल है। प्रगतिशील लेखक संघ नवादा के साथियों ने आज रेलवे हॉस्पिटल गार्डन में एक शोक सभा का आयोजन कर उपर्युक्त उद्गार व्यक्त किये। शोक सभा की अध्यक्षता करते हुए जिला सचिव अशोक समदर्शी ने कहा कि नामवर सिंह हिंदी साहित्य के उन्मुक्त गगन का एक मात्र सितारा थे जिन्होंने दशकों तक प्रगतिशील साहित्य का दामन थामे रखा।
खास कर प्रतिरोध की संस्कृति जीवित रखने के लिए उन्होंने कविता विधा को अचूक हथियार माना था। प्रलेस के पूर्व अध्यक्ष शम्भु विश्वकर्मा ने कहा कि आजादी के बाद के दशकों में उनकी साहित्यिक सक्रियता ने खेप के खेप साहित्यकार पैदा किया है जो विचारधारा के स्तर पर आज भी क्रियाशील हैं। एक साहित्यकार की संवेदना को उन्होंने जीवन पर्यन्त बनाये रखा और राजनीति के डगमगाते पांव को संतुलित रखने की कोशिश करते रहे। अध्यक्ष नरेंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि नामवर सिंह केवल नामवर ही नहीं कामवर भी रहे हैं जिन्होंने हिंदी साहित्य के नामचीन और युवा कवियों को जनमानस तक पहुँचाने की कोशिश की।
खास कर नागार्जुन जैसे कवियों की रचनाएँ आलोचना की कसौटी पर रखकर उन्होंने अद्भुत कार्य किया है। दिनेश कुमार अकेला ने भी नामवर सिंह की चिंतन धारा को महत्वपूर्ण बताया और उनके निधन को अपूर्णीय क्षति करार दिया। शोक सभा को संबोधित करने वालों में नामवर सिंह की रचनाओं के अध्येता अवधेश प्रसाद, जनवादी नेता दिनेश सिंह, परमानन्द सिंह, संजय कुमार, बिनोद कुमार, दशरथ प्रसाद आदि कवि साहित्यकार और सुधिपाठक शामिल थे। शोक सभा के अंत में दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। मौके पर प्रलेस के साथियों ने नामवर सिंह अमर रहे के नारे भी लगाये।