नवादा :- कल और आज- रामरतन प्रसाद सिंह ‘रत्नाकर’

नवादा

नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया) नवादा का वादा चाहे जिसके साथ, जिस रूप में रहा हो, लेकिन नवादा अनुमंडल का गठन 1845 में हुआ। उस समय से नवादा का लेखा-जोखा अगर लिया जाए तो सुखाड़ नवादा के लिए कठिन समस्या है। हर खेत तक पानी पहुंचाने का एक बड़ा वादा जो पूरा नहीं हो सका। इस संदर्भ में 1952-53 में सकरी नहर दाएँ और बाएं के रूप में खोदा गया, उसी समय कौड़ीहारी नहर भी खोदा गया, इसके बाद बीच में सन्नाटे का आलम रहा। 1967 के बाद एक दर्जन छोटे एवं बड़े आकार का जलाशय, 140 के लगभग गहरे नलकूप और सैकड़ों की संख्या में निजी नलकूप लगाने के बाद भी खेती लायक 25% भूमि के सिंचाई की व्यवस्था हो सकी है।

आजादी के प्रथम दशक में जिले में एकमात्र उद्योग के रूप में वारिसलीगंज चिनी मिल चालू हुआ था, जिनके कारण के किसानों को नगदी आय हो रही थी लेकिन 1973 से आजतक बंद है।1955 के आस पास तक जिले में जो उस समय अनुमंडल था, एक भी कालेज नहीं था। सिर्फ 4 उच्च विद्यालय कार्यरत थे। लेकिन 1973-74 तक आते-आते दर्जन के करीब कालेज खुले और अब 4 अंगीभूत कालेज और एक दर्जन के करीब मान्यता प्राप्त कालेज हैं। एक भी व्यवस्थित निजी स्कूल नहीं था। अब आजादी के 75 साल बाद के 1995 से लेकर आजतक शिक्षण का कार्य अवरूद्ध है। कालेज सिर्फ फार्म भरने और परीक्षा देने तक सीमित है।

1973 में नवादा को जिले का दर्जा प्राप्त हुआ, उसके बाद विकास का एक नया स्वरूप सामने आया उसमे खासकर नवादा, वारिसलीगंज, हिसुआ, रजौली शहरों के विकास ने गति पाया और स्वास्थ्य सेवा का विस्तार हुआ। जिला मुख्यालय तक सडकों का सौंदर्यीकरण हुआ। उपरोक्त प्रखंड कार्यालयों तक सड़कों का निर्माण आजादी के प्रथम दशक तक ही हो गया था। आजादी के प्रथम दशक में ही नवादा, वारिसलीगंज और हिसुआ में बिजली उपलब्ध होने लगी, जिसका आगे और विस्तार होने लगा। लेकिन सही ढंग से बिजली की आपूर्ति 2010 के बाद से ही संभव हो पाया है।

नवादा शहर के संदर्भ में 1812 में फ्रांसीस बुकानन ने लिखा था कि यहां सिर्फ 500 मिट्टी का मकान था, जिसका छप्पर घास-फूस और ताड़ के पत्ते का था। 10 मकान पक्का, 50 मकान खपरैल का था। लेकिन जिले के गठन के बाद, जिला परिषद की भूमि पर बड़ी संख्या में दुकानों का निर्माण हुआ, विजय बाजार एक नए स्वरूप में सामने आया, पास में ही एक गहरे तालाब जो अंग्रेज़ों ने बनाया था उसमें नगर भवन का निर्माण किया गया। और आज नवादा, वारिसलीगंज और हिसुआ बाजार का तेजी से विकास जारी है।

नवादा जिले में कई महत्वपूर्ण स्थान है उसमें मेसक़ौर प्रखंड के सीतामढ़ी गुफा, गोबिंदपुर प्रखंड के 150 फीट की उंचाई से गिरते हुए ककोलत जलप्रपात, लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा 1952 में स्थापित सोखोदेवरा आश्रम और रजौली, अकबरपुर और गोनावां का गुरुनानकजी का गुरूद्वारा एवं जैन धर्म के श्वेतांबर एवं दिगंबर मंदिर खासकर जल मंदिर पर्यटक स्थल विकसित करने की संभावना का इंतजार कर रहा है।

नवादा जो पुर्व में अनुमंडल था, जो फिर जिला बना आजादी के प्रथम दशक में जिस गति से विकास हुआ आगे के वर्षों में विकास अवरुद्ध है, खासकर 1990 से लेकर आज तक में कुछ उस ढंग के विकास का दर्शन नहीं हो रहा है जिससे किसानों की आय बढ़ सके, शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो, स्वास्थ्य सेवा में विस्तार हो, यह तभी संभव है जब संवेदनशील जनप्रतिनिधि हों।