Patna, Beforeprint: संजय जायसवाल ने चुनाव आयोग को सवालों के कठघरे में खड़ा करते हुए बुधवार को फेसबुक पर एक बयान जारी किया। जिसमें उन्होंने कहा कि ‘चुनाव आयोग स्वतंत्र एजेंसी के रूप में काम न करके मुख्यमंत्री के ऑफिस के स्टाफ की तरह काम कर रहा है। जब कोई विपक्ष का नेता पुराने काम का भी लोकार्पण करना चाहता है तो उसे आदर्श आचार संहिता का नाम लेकर रोक दिय जाता है। सीएम, डिप्टी सीएम और मुख्य सचिव जब कोई उद्घाटन या शिलान्यास करना हो तो यह संहिता कहां चली जाती है।’
उन्होंने कहा कि अगर किसी सांसद अथवा विधायक को नगर में 6 महीने पुराने सड़क का भी उद्घाटन करना है।
जिलाधिकारी हमें नियम समझाते हैं की बिहार के शहरों में आदर्श आचार संहिता लागू है और इसलिए कोई कार्य आप नहीं कर सकते हैं। तना ही नहीं अगर 18 वर्ष से कम के बच्चों का भी कोई कार्यक्रम एक सांसद के रूप में मैं करना चाहता हूं तो आदर्श आचार संहिता की दुहाई देकर हमें रोका जाता है। उन्होंने आरोप लगाया कि दूसरी तरफ बिहार के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, सभी विभागों के सचिव खुले आम पटना शहर में पुरानी नौकरियों को नया बताकर बांटते हैं। गया में नल जल योजना का सार्वजनिक उद्घाटन एवं सभा करते हैं। पर इसका संज्ञान लेने की सुध निर्वाचन आयोग को नहीं है।
उन्होंने कहा कि राज्य निर्वाचन आयोग को यह बताना चाहिए कि जब सांसद और विधायक कोई भी कार्यक्रम, आदर्श आचार संहिता के तहत शहर में नहीं कर सकते हैं तो किस नियम के तहत मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री एवं विभिन्न विभागों के सचिव सार्वजनिक सभा कर पटना में नौकरियां बांट रहे हैं एवं बोधगया में नदी जल योजना का उद्घाटन कर रहे हैं।
उन्होंने सवाल किये कि क्या यह नगर में लगे आदर्श आचार संहिता में नहीं आता है। अगर यह आता है तो अभी तक मुख्यमंत्री एवं उपमुख्यमंत्री के ऊपर एफआईआर निर्वाचन आयोग ने क्यों नहीं किया है? और अगर यह नहीं आता है तो किस नियम से सांसद और विधायकों को नगर में किसी भी कार्य पर आदर्श आचार संहिता की बात की जा रही है?