-उत्तर मध्य भारत प्रकाशक संघ के प्रतिनिधियों ने शिक्षा मंत्री सुनील कुमार से मिलकर की शिकायत!
स्टेट डेस्क/पटना: बिहार में किताबों की खरीदारी में बड़ा खेल का खुलासा हुआ है। उत्तर मध्य भारत प्रकाशक संघ के प्रतिनिधियों ने शिक्षा मंत्री सुनील कुमार से मिलकर इसकी शिकायत की है! संघ का आरोप है कि शिक्षा विभाग ने स्कूलों में किताबों की खरीदारी के लिए मिनिमम टेंडर अहर्ता 10 लाख रुपये सालाना टर्नओवर से बढ़ाकर 5 करोड़ कर दिया है। इस बदलाव का सीधा फायदा गिने-चुने बड़े प्रकाशकों को होगा। इस बदलाव की जानकारी मंत्री को भी नहीं है।
ऐसे में कहा जा रहा है कि यह प्रभात, राजकमल आदि प्रकाशनों का खेल है। क्योंकि मंत्री को पता ही नहीं, तो क्यों न माना जाये कि अफसरों से है सांठ-गांठ कर यह खेल हो रहा है!
जानकारों का कहना है कि भाजपा की सरकार ने आडंबर रचा कि ‘राजा राम मोहन राय लायब्रेरी’ की खरीद में छोटे प्रकाशकों को तब्बजो दी जाएगी। फिर धीरे- धीरे बड़े प्रकाशकों, खासकर प्रभात प्रकाशन, राजकमल और वाणी की मोनोपॉली बढ़ी। सबसे बड़ा प्लेयर प्रभात प्रकाशन है।
इन बड़े प्रकाशकों के खेल ने अब बिहार को टारगेट किया है
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने स्कूलों के लिए किताब का मिनिमम टेंडर अहर्ता 10 लाख से बढ़ाकर 5 करोड़ कर दिया है, जिसके विरोध में देश भर के कई प्रकाशकों ने कल शिक्षा मंत्री से मुलाकात की। इस बदलाव के पीछे बड़े प्रकाशकों का खेल माना जा रहा है। हिंदी के तीन चार प्रकाशक ही इस नियम के बाद खेल में टिक पाएंगे।
शिक्षा मंत्री को इस नये नियम का पता नहीं था। वे 10 लाख से 5 करोड़ किए जाने को लेकर खुद आश्चर्य चकित थे। शायद अधिकारियों को नोट भेजा है।
हद तो तब हो गई जब मुखिया के फंड से हर पंचायत के लिए खरीदी जाने वाली 2 लाख की किताबों के लिए भी मंत्रालय से सूची जारी कर दी गयी। इसमें राजकमल सबसे बड़ा लाभार्थी बताया जा रहा है। सवाल है कि तब विकेंद्रीकरण का क्या?
सवाल उससे भी बड़ा कि क्या किताबें कोई कार या तकनीकी वस्तु हैं जो सबसे बड़े उत्पादक से खरीदी जाएं। कई छोटे प्रकाशक बेहतरीन किताबें छाप रहे हैं।
इस बार प्रकाशकों के संघ ने बातें नहीं माने जाने पर पटना में धरना का सोचा है, या अचानक से बढ़ाए गए न्यूनतम अर्हता को कोर्ट में चुनौती को सोचा है।
एक एक टाइटल की 25 हजार कॉपी खरीदी जानी हैं कुल 35 करोड़ की स्कूली किताबों के लिए यह टेंडर है।
पढ़िए, प्रकाशकों का आपत्ति आवेदन
प्रति,
राज्य परियोजना निदेशक
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद
शिक्षा भवन, पटना, बिहार
विषय : बिहार शिक्षा परियोजना परिषद द्वारा जारी विज्ञप्ति की अनुचित शर्तों के सन्दर्भ में।
महोदय,
हमारा उपरोक्त संघ ‘उत्तर मध्य भारत प्रकाशक संघ’ जिसमें भारत के विभिन्न राज्यों से प्रकाशक जुडे हुए हैं, जो कि प्रकाशकीय हितों की रक्षा के लिए सदैव प्रयासरत है। उन सब की तरफ से हमारा संघ आपके कार्यालय द्वारा निकाली गई विज्ञप्ति नं : BEPC/Library Books/2024/3523 Dt. 23/08/2024 जिसमें बहुत सी अनुचित शर्ते लगाईं गयी हो जो प्राकृतिक न्याय, सिद्धांत के विरुद्ध है प्रकाशकों पर सीधा मानसिक अत्याचार है। हमारा संघ आपकी विज्ञप्ति का विरोध करते हुए सभी अनुचित शर्तां को हम निम्नवार आपके संज्ञान म ला रहे हो।
- महोदय, हम आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहते हो कि वरिष्ठ अधिकारी जो भी इस खरीद के नीतिगत फैसलों से जुड़े हो, उन्होंने शायद पुस्तक खरीद को भी दूसरे सामानों (जैसे कि कंप्यूटर, बैटरी, डिजिटल बोर्ड) की तरह समझा है जो उन्होंने इस तरह की नई एवं अनुचित शर्त जोड़ दी हो। पिछले साल इसी विभाग द्वारा पुस्तक खरीद विज्ञापन म तीन वर्षों का औसत टर्न ओवर 10 लाख मांगा गया था, जो कि इस बार बढाकर 5 करोड़ कर दिया गया है। जबकि पुस्तक प्रकाशन म सिर्फ वित्तीय टर्नओवर ही गुणवत्ता का मानक नह° हो सकता। शायद जो प्रकाशक साल म सिर्फ 10-15 लाख का व्यवसाय कर रहा हो वो 5 करोड़ टर्नओवर वाले प्रकाशक से अच्छी और अधिक गुणवत्ता पूर्ण पुस्तक प्रकाशित करता हो।
- महोदय, विभाग द्वारा विगत वर्षों में 25000 पुस्तकें सप्लाई करने के आदेश की प्रति मांगी गई है, जो कि बहुत ही अनुचित है क्योंकि विगत वर्षां में समग्र शिक्षा छत्तीसगढ़ और राजस्थान सरकार द्वारा ही इतनी बडी संख्या में पुस्तकों की खरीद हुई है वो भी प्राथमिक स्कूल स्तर पर कुछ चुनिंदा प्रकाशकों द्वारा। किसी अन्य हिंदी भाषी राज्य में इतनी बड़ी पुस्तक खरीद नहीं हुई है।
- महोदय, इस विज्ञापन से ऐसा प्रतीत होता है कि ये विज्ञप्ति शासन से जुड़े कुछ चुनिंदा प्रकाशकों के इशारे पर उनके लिए ही निकाली गई है। अनुच्छेद 301 भाग ग्प्प्प् किसी भी व्यापारी को पूरे देश म व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्राता देता है। संविधान का अनुच्छेद 19 (g) किसी भी पेशे का अभ्यास करने या कोई वृत्ति, व्यापार या व्यवसाय करने का अधिकार प्रदान करता है उसे इस विज्ञप्ति के द्वारा छीना जा रहा है। छोटे और मझले व्यापारियों को सरकारी टडर्स से कैसे दूर रखा जाता है वो समग्र शिक्षा, बिहार की और से जारी इस साल की पुस्तक खरीद की विज्ञप्ति और पिछले साल की विज्ञप्ति की शर्तों के अंतर से साफ समझा जा सकता है।
- महोदय, इस साल विभाग की तरफ से जीएसटी में पंजीकरण भी अनिवार्य बताया गया है, जबकि पिछले वर्ष जीएसटी की अनिवर्यता नहीं थी। पुस्तकों की बिक्री पर जीएसटी कोड 4901 पर वैसे भी किसी प्रकार का टैक्स देय नहीं है।
- महोदय, वर्ष 2021-2022 में भी इसी तरह की अनुचित शर्तां के साथ पुस्तक खरीद विज्ञापन संख्या 6337 दिनांक 2.10.2021 निकाला गया था। उस साल भी पुस्तक क्रय राशि 35 करोड़ ही थी, जिसका आर्पित आदेश एक बड़े प्रकाशन समूह की अलग-अलग कई फर्मों को दे दिया गया था। इस साल भी उसी तरह की विज्ञप्ति की पुनरावृत्ति भी फिर से उसी तरह के आदेश करने की मंशा को दिखाता है, जो कि छोटे ओर मझले स्तर के प्रकाशकों के साथ अन्याय है।
महोदय हमारा संघ आपसे अनुरोध करता है, कि पिछले साल की विज्ञप्ति का संज्ञान लेते हुए इस साल के विज्ञापन में जोडी गई नई एवं अनुचित शर्तां को पूर्णतः हटाया जाए और नया विज्ञापन निकाला जाए, जिससे देश के ज्यादा से ज्यादा प्रकाशक इस खरीद प्रक्रिया का हिस्सा बन पाएं और देश के सभी प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित नवीनतम और श्रेष्ठ पुस्तकों का लाभ बिहार प्रदेश के विद्यालयों के बच्चों तक पहुंच पाएं।
हम उम्मीद करते हैं, कि आप हमारे अनुरोध पर विचार करेंगें और हमारी समस्याओं के निवारण के लिए आपके कार्यालय द्वारा संबंधित विभाग को योग्य दिशा-निर्देश जारी करेंगें। सादर धन्यवाद!
प्रतिलिपिः-
मान. मुख्यमंत्रा बिहार सरकार
मान. शिक्षामंत्रा बिहार सरकार
शिक्षा सचिव भारत सरकार
मुख्य सचिव बिहार सरकार
अपर मुख्य सचिव (शिक्षा विभाग) बिहार सरकार