नई खोजःपित्ताशय की थैली में कैंसर रोग का कारक है जल का जहर आर्सेनिक

पटना

-जापान की वितीय सहयोग से बिहार के पटना में पित्ताशय कैंसर शोध केन्द्र है स्थापित।डुमरांव का लाल डा.अरूण है मुख्य अनुदेशक।

विक्रांत। जल का जहर आर्सेनिक पित्ताशय की थैली के कैंसर जैसे बीमारी का कारक है। पहली बार इसका खुलासा महावीर कैंसर संस्थान व पित्ताशय कैंसर अनुसंधान केन्द्र पटना से जुड़े विज्ञानियों शोध के बाद किया है।विज्ञानियों द्वारा किए गए शोध कार्य को गत 14 मार्च, 2023 को नेचर जेनरल सांइटिफिक रिर्पोटस ने प्रकाशित किया है। इस शोध से दुनिया को पहली बार जानकारी मिला है कि जल का जहर आर्सेनिक शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं को साथ बांधता है। फिर सिस्टीन, टाॅरिन और चेनोडाॅक्सिकोलिक एसिड जैसे योगिको को साथ बांध कर पित्ताशय की थैली तक पहुंच जाता है। बाद में पित्ताशय में पथरी बनाता है। लंबी अवधि तक अनुपचारित बीमारी इसे पित्ताशय की थैली कैंसर रोग में परिवर्तित कर देती है। महावीर कैंसर संस्थान में जापान विज्ञान एवं प्रौद्यिगिकी एजेंसी(जेएसटी) टोक्यो की सहायता से निर्मित पित्ताशय कैंसर शोध केन्द्र के मुख्य अनुदेशक व डुमरांव के लाल वरीय विज्ञानी डा.अरूण कुमार ने बताया कि पित्ताशय की थैली में कैंसर रोग का प्रमाण आणविक डाॅकिंग के माध्यम से सामने आया है।

इस अध्ययन के लिए 152 पित्ताशय थैली के रोगियों ने स्वेच्छा से भाग लिया था। रोगियांें के पित्ताशय की थैली के उत्तको में 340.6 यूजी/केजी के औसत स्तर के साथ बहुत अधिक आर्सेनिक सांद्रता पाई गई थी। पित्त पथरी के औसत स्तर में 78.41 यूजी/केजी, रक्त औसत स्तर में 52.28 यूजी/एल एवं रोगियों के बालों के नमूनों में नियंत्रण समूह की तुलना में 649.7 यूजी/केजी का स्तर पाई गई थी। विज्ञानी डा.कुमार ने बताया कि पित्ताशय की थैली का बोझ बक्सर, भोजपुर, पटना, सारण, समस्तीपुर, वैशाली, गोपालगंज, किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा, पश्चिम चंपारण, कटिहार, भागलपुर एवं मुंगेर सहित सूबे में गंगा के मैदानी इलाके के लोगों में इस बीमारी का बोझ सबसे अधिक है। उन्होनें बताया कि सूबे के लिए गर्व की बात है कि यह मूल्यवान शोध कार्य नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

इस रोग के निदान व उपचार में प्रांत का महावीर कैंसर संस्थान पटना कैंसर रोगियों की सबसे बड़ी संख्या को पूरा करता है। कुल कैंसर रोगियों के बीच पुरूषो में 8.3 फीसद एवं महिलाओं में 16.9 फीसद जीबीसी मामले पाए गए है। उन्होनें बताया कि पुरूषों की तुलना में महिलाओं में कैंसर की बीमारी पाई गई है। भारत में पित्ताशय कैंसर(जीबीजी) सबसे अधिक वितरण की जानकारी बिहार, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम और दिल्ली जैसे राज्यो प्राप्त हुई है। इस बीमारी के बोझ को नियंत्रित करने की तत्काल जरूरत है। जो प्रभावित आबादी के आर्सेनिक जोखिम को कम कर सकती है।

पित्ताशय कैंसर शोध केन्द्र तीन साल पहले बना था- पित्ताशय थैली के कैंसर एवं जीवित-पर्यावरणीय कारकों के बीच संबधों को स्पष्ट करने के लिए जापान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एजेंसी, टोक्यो की सहायता से करीब तीन साल पहले महावीर कैंसर संस्थान में शोध केन्द्र की स्थापना की गई थी। इस तीन वर्षीय परियोजना के लिए जेएसटी द्वारा कुल बजट एक करोड़ की राशि वित्त पोषण प्रदान की गई थी। पटना स्थित महावीर कैंसर संस्थान के अनुसंधान विभाग द्वारा इस नए खोज कार्य को अंजाम देने के लिए डुमरांव के लाल वरीय वैज्ञानिक डा.अरूण कुमार को मुख्य अनुदेशक बनाया गया था।

इस शोध कार्य में सहयोगी विज्ञानियों में कैंसर शोध विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार घोष, संस्थान के विज्ञानी डा.मोहम्मद अली डा. मनीषा सिंह,डा.प्रीति जैन, डा.अजय विद्यार्थी, पटना वीमेंस कालेज की डा.आरती कुमारी, जियोलाॅजिकल सर्वे आॅफ इंडिया पटना के डा.अखौरी विश्वप्रिया के आलावे टोक्यो विश्वविद्यालय की विज्ञानी डा.मैको साकामोटो, कनाडा के सस्केचेवान विश्वविद्यालय के डा.सोम नियोगी, दिल्ली एम्स के डा.अशोक शर्मा, नीदरलैंड के विज्ञानी संतोष कुमार, यूपीईएस विवि के डा.ध्रुव कुमार, हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के डा.रंजीत कुमार का नाम शामिल बताया गया है। बक्सर के लाल ने ठाना है कैंसर को मिटाना है-आज जहां मानवीय संवेदनाएं दिनों दिन मरती जा रही है।

वहीं कुछ लोग ऐसे भी है। जो अपनी इल्म का इस्तेमाल आराम भरी जिंदगी को छोड़ कर दूर दराज के ग्रामीण इलाकों में मानव कल्याण के कार्य मे सेवा भाव से लगे है। ऐसे ही एक शख्स है डा.अरूण कुमार। जो अपनी असाधारण प्रतिभा का इस्तेमाल जिले के आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में कैंसर के शिकार हो रहे लोगो की सेवा करने में जुटे हुए है। कैंसर जैसे भयावह रोग के खात्में को अपने जीवन का लक्ष्य बनाने वाले विज्ञानी डा. कुमार बक्सर जिला के डुमरांव अनुमंडल क्षेत्रान्र्तगत खड़रीचा गांव के निवासी है। संप्रति वे महावीर कैंसर संस्थान पटना के माध्यम से कैंसर जैसे भयावह रोग के सवाल पर अपने अन्य सहयोगी साथियों की सहायता से कैंसर के कारको की खोज कर रहे है। वर्ष 2010 से कैंसर प्रभावित क्षेत्र के लोगों की सेवा मे जुुटे हुए है।