आज के भागदौड़ भरी जिंदगी में दुनिया के हर चौथे व्यक्ति को मानसिक बीमारी होने का खतरा रहता है. इसमें आब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (ओसीडी) तेजी से अपना पैर फैला रहा है या यूं कह सकते हैं कि 10 मानसिक बीमार में 7 ओसीडी का ही मरीज मिल जाता है. ओसीडी एक सामान्य चिंता से शुरू होता है या कह सकते हैं चिंता का रोग है. लेकिन इलाज नहीं होने पर या अधिक दिनों तक बने रहने पर क्रॉनिक धीरे-धीरे रोगी के अंदर शंका या विभ्रम की स्थिति आ जाती है. जिससे यह गंभीर मानसिक बीमारी में परिवर्तित हो जाता है.
इसे सोकटम ओब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर कहते हैं. मनोचिकित्सक के पास आने वाले मानसिक रोगी में 40% ओसीडी के रोगी होते हैं. इस मानसिक बीमारी की शुरुआत बाध्यता ऑब्सेशन से होती है. रोगी जानता है कि उसकी चिंता बेवजह एवं अर्थहीन है. लेकिन खुद को उस चिंता से मुक्त करने में असमर्थ पाते हैं. जो कि उस व्यक्ति बाध्यता होती है, जरूरत से अधिक बार-बार किए गए कार्य या विचार से व्यक्ति का दैनिक जीवन काफी प्रभावित होता है. साथ ही उसके साथ रहने वाले व्यक्ति को भी काफी परेशानी होती है. जैसे बार-बार हाथ धोना, सारा दिन स्नान करते रहना, किसी के छू लेने पर स्नान करना.
उदाहरण के लिए 19 साल का सोहन कमरे से निकलता है. फिर वापस आ जाता है. कहीं गैस खुला तो नहीं रह गया. राकेश शर्मा को लगता है कि कहीं उसे एचआईवी तो नहीं हो गया या कोई असाध्य बीमारी से ग्रसित तो नहीं है. आज महिला-पुरुष और किशोर यहां तक कि बच्चे भी ओसीडी से ग्रसित हो रहे है. इसके कारण रोगी में आत्मविश्वास की कमी, शंका का चिड़चिड़ापन, आक्रोश और विभ्रमता के लक्षण दिखने लगते हैं. व्यक्ति अपने निरर्थक विचार एवं कार्य में इतना व्यस्त हो चुका होता है कि बाहर की दुनिया से कट जाता है. यह संवेगात्मक रूप से काफी कमजोर होते हैं. यही वजह है कि खुद में जल्दी ही हीन भावना और असुरक्षा और खुद को कम आंकने लगते हैं.
इलाज
ओसीडी कोई लाइलाज बीमारी नहीं है. मनोचिकित्सा एवं दवा से इसका इलाज संभव है. लेकिन मनोचिकित्सा और व्यवहार चिकित्सा के जरिए काफी हद तक सुधार लाया जा सकता है. चुकी ओसीडी के मनोरोगी के अंदर एक डर व चिंता समाई रहती है. जिससे वह निकल नहीं पाते. ऐसे रोगी के साथ एक्सपोजर एक्सरसाइज, जैसे जो रोगी किसी व्यक्ति से मिलना पसंद नहीं करते उन्हें लोगों से मिलने जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. ओसीडी एक सीखा हुआ विकृति माना जाता है.
अतः व्यवहार चिकित्सा के द्वारा व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाया जाता है. मॉडलिंग, फ्लोडिंग रेस्पॉन्स प्रिवेंशन से सफल उपचार संभव होता है. इसके साथ रोगी के साथ परिवार वाले का व्यवहार भी काफी सहयोगात्मक होना जरूरी रहता है. समय रहते इसका इलाज करा लेना बेहतर होता है. नहीं तो ओसीडी गंभीर मानसिक बीमारी का रुप ले सकता है.
