कुंवर सिंह की पौत्रवधु को किले में बंदकर भाजपाइयों ने दिखा दिया अपना असली चेहरा : माले

Politics बिहार मुजफ्फरपुर

मुजफ्फरपुर/ब्रह्मानन्द ठाकुर। भाकपा माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि भाजपा व आरएसएस का असली चेहरा आज फिर से बेनकाब हुआ। आज जहां एक तरफ कुंवर सिंह विजयोत्सव मनाया जा रहा था, वहीं दूसरी तरफ कुंवर सिंह की पौत्रवधु को किले में ही बन्द कर दिया गया।

उनकी पौत्र वधु ने भोजपुर प्रशासन पर गम्भीर आरोप लगाए हैं। यहाँ तक कि इस साल उन्हें कुंवर सिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण भी नहीं करने दिया गया। माले राज्य सचिव ने उनके द्वारा सोशल मीडिया पर जारी वीडियो में उठाये गए सवालों पर सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है।

विदित हो कि कुछ दिन पहले कुंवर सिंह के प्रपौत्र बबलू सिंह की हत्या कर दी गई थी। उनकी माँ का कहना है कि प्रशासन को सब कुछ पता है लेकिन कोई कारवाई नहीं हो रही है। उन्होंने कहा कि प्रशासन के अधिकारियों से लेकर भाजपा के नेताओं को भी लिखित आवेदन दिया गया, लेकिन उल्टे आज उन्हें ही किले में बंद कर उनकी आवाज दबाने की कोशिश की गई।

भाजपा का यही असली चरित्र है। जो पार्टी कुंवर सिंह के परिजनों के साथ ऐसा व्यवहार कर सकती है, वह किसी शहीद का सम्मान नहीं कर सकती। भाजपाई एक तरफ 1857 के गद्दार डुमरांव महाराज की प्रतिमा भी बनवा रहे हैं, जिन्हें बाबू कुंवर सिंह की मौत के बाद उनकी संपत्ति का एक बड़ा भाग अंग्रेजों से इनाम स्वरूप हासिल हुआ था। गद्दार और क्रांतिकारी एक सांचे में कभी फिट नहीं किए जा सकते।

इस बार विजयोत्सव के कार्यक्रम का भाजपाकरण के खिलाफ पूरे बिहार में प्रतिवाद हुआ। आज पटना के कंकड़बाग में माले राज्य स्थायी समिति सदस्य रणविजय कुमार के नेतृत्व में प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन में उनके अलावा माले पटना नगर किमिटी सदस्य सह कंकड़बाग एरिया सचिव पन्नालाल सिंह, माले पटना नगर कमेटी सदस्य सह वार्ड 30 सचिव डॉ. प्रकाश कुमार सिंह, माले सह ऐक्टू नेता अम्बिका प्रसाद, अरविंद प्रसाद चन्द्रवंशी एवं उमेश शर्मा आदि कर रहे थे।

मौके पर नेताओं ने कहा कि सत्ता व जनता की गाढ़ी कमाई का दुरूपयोग करते हुए आयोजित इस भाजपाई कार्यक्रम में गृह मंत्री अमित शाह आ रहे हैं। अमित शाह का इतिहास क्या है? सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके देश में उन्माद पैदा करना ही इनका पेशा रहा है। देश को सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलसा देने वाले भाजपाइयों को बाबू कुंवर सिंह का नाम लेने क्या नैतिक हक है?

बाबू कुंवर सिंह हिंदू-मुस्लिम एकता के बड़े समर्थक थे। उनके पत्र संवाद जहानाबाद के 1857 के नेता जुल्फीकार अली से थे, जिससे जाहिर होता है कि उस युद्ध में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच अभूतपूर्व एकता थी। ये सभी क्रांतिकारी अंग्रेजों के खिलाफ एक व्यापक मोर्चाबंदी की चर्चा किया करते थे।

यह भी पढ़ें…

1857 की पहली लड़ाई में हिन्दुओं व मुसलमानों के बीच बनी एकता बाद में भी हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की आधारशिला बनी रही। ऐसी एकता के प्रबल समर्थक बाबू कुंवर सिंह को दंगाई-भाजपाईयों के हाथों कभी हड़पने नहीं दिया जाएगा।शाहाबाद की धरती ऐसे दंगाई मिजाज के लोगों को कभी स्वीकार नहीं करेगी।