पटना हाइकोर्ट ने जिस जातीय सर्वेक्षण को न्यायसंगत बताया, उसे रोकने को दो पूर्व IPS अफसर भी लड़ रहे थे कानूनी जंग!

पटना

हेमंत कुमार/पटना: पटना हाइकोर्ट ने जिस जातीय सर्वेक्षण को ‘न्याय के साथ विकास’ के सिद्धांत पर आधारित न्यायसंगत कार्रवाई बताया है। और उस पर लगाई अंतरिम रोक हटा ली है, उस जातीय सर्वेक्षण को रोकने के लिए इंडियन पुलिस सर्विस ( IPS) के दो-दो पूर्व पुलिस अफसर भी क़ानूनी जंग लड़ रहे थे।

ये दोनों डीजी रैंक से रिटायर पुलिस अधिकारी हैं। इनमें से एक आमोद कुमार कंठ तो दिल्ली के पुलिस कमिश्नर रह चुके हैं। दूसरे पूर्व पुलिस अधिकारी का नाम है ,सुशील कुमार भारद्वाज। भारद्वाज ब्राह्मण और कंठ कायस्थ बिरादरी से आते हैं। भारद्वाज बिहार कैडर के पुलिस अफसर रहे हैं। वे रहने वाले उत्तर प्रदेश के हैं ,लेकिन पटना में बस गये हैं। आमोद कुमार कंठ Union Territory कैडर के पुलिस अफसर‌ रहे हैं।

बिहार के मूल निवासी हैं। दिल्ली में बस चुके हैं। कंठ जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं, जिनकी संस्था ‘प्रयास’ बाल संरक्षण के कार्यों के लिए समर्पित बतायी जाती हैं। कंठ दिल्ली के चर्चा उपहार सिनेमा हादसे में इसी साल अप्रैल सुप्रीम कोर्ट से बरी किये गये हैं। उपहार सिनेमा हाल में चर्चित फिल्म बार्डर के शो के दौरान आग लगी थी जिसमें 59 दर्शक मारे गये थे। कंठ पर आपराधिक लापरवाही का मामला चल रहा था।

बिहार में जातीय सर्वेक्षण को रोकने की कानूनी जंग लड़ने वाले बौद्धिक और द्विज समाज के सुरेश कुमार भारद्वाज और आमोद कुमार कंठ जैसे और भी लोग थे। इनमें तीन तो प्रोफेसर नामधारी शख्स भी हैं। प्रोफेसर संगीत कुमार रागी भाजपा के पितृ संगठन RSS के विचारक माने जाते हैं! प्रोफेसर रागी गाजियाबाद की वसुंधरा कालोनी में रहते हैं। दूसरे प्रोफेसर कपिल कुमार दिल्ली के रहवासी हैं। तीसरे का नाम प्रोफेसर मक्खन लाल है। ये उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर के निवासी हैं।

एक डाक्टर साहब भी हैं। इनका नाम है डा भूरेलाल। ये नोएडा में रहते हैं। आरक्षण विरोधियों का चर्चित संगठन यूथ फॉर इक्वालिटी के शुभम कुमार भी जातीय सर्वेक्षण रोकना चाह रहे थे। शुभम रहने वाले तो पटना के हैं। लेकिन रहते हैं दिल्ली के पाश इलाके साउथ एक्स में। वैशाली जिले की एक महिला अहना कुमारी भी इस लड़ाई में शामिल थीं।‌वह वैशाली ब्लाक चौक की निवासी हैं।

पटना के खगौल की मुस्कान कुमारी दूसरी महिला हैं जो इस जंग में आहुति दे रही थीं। एक सज्जन बांका जिले से हैं,उनका नाम है, अंकित रौशन। नालंदा के अखिलेश कुमार भी जातीय सर्वेक्षण रोकना चाहा रहे थे। एक एनजीओ जिसका नाम है, ‘एक सोच एक प्रयास’ उसके कर्ताधर्ता हैं उपेन्द्र कुमार,वह भी जातीय सर्वेक्षण रोकना चाहते थे।

पटना हाईकोर्ट ने उपर्युक्त 12 लोगों की छह याचिकाएं खारिज कीहै। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के विनोदचंद्रन और जस्टिस पार्थसारथी ने 101 पेज में लिखे अपने फैसले में कहा कि उसे लगता है कि राज्य सरकार का यह काम पूर्णतः वैध है जिसे पूरी क्षमता के साथ शुरू किया गया है। और जिसका उद्देश्य न्याय के साथ विकास प्रदान करना है जैसा कि दोनों सदनों में कहा गया है।

यह भी कि इस सर्वे में ब्योरा जानने के लिए कोई बाध्यता नहीं होगी। इस प्रकार यह सर्वे निजता के किसी अधिकार का उल्लंघन नहीं करता क्योंकि यह जनहित में किया गया काम है और वास्तव में वैध राज्यहित का भी। फैसले में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं की सुरक्षा संबंधी आपत्तियों का ध्यान रखा गया है और इससे यह सर्वे गलत नहीं क़रार दिया जा सकता। इस फैसले में बिहार विधान मंडल के कार्यक्षेत्र और सर्वे को लेकर व्यक्त की गई सुरक्षा चिंताओं की विस्तार से चर्चा की गई है।

कोर्ट ने कहा कि सुरक्षा चिंताओं के बारे में राज्य सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा है कि जाति आधारित सर्वे में पूर्णतः सुरक्षित प्रक्रिया अपनाई जा रही है। और इसके लीक होने की कोई संभावना नहीं है।

ये थे याचिकाकर्ता…

  1. यूथ फॉर इक्वलिटी ,शुभम कुमार
  2. डॉक्टर भूरेलाल
  3. प्रोफेसर मक्खन लाल
  4. प्रोफेसर कपिल कुमार
  5. प्रोफेसर संगीत कुमार रागी
  6. सुश्री अहना कुमारी

7.अखिलेश कुमार
8.एक सोच एक प्रयास, उपेन्द्र कुमार
9.सुरेश कुमार भारद्वाज
10.आमोद कुमार कंठ
11.मुस्कान कुमारी
11.अंकित रोशन