संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार की एमएसपी व अन्य मुद्दों पर बनी कमेटी को किसान विरोधी बताकर किया खारिज

बिहार मुजफ्फरपुर

प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा, यह कमिटी सरकारी सदस्यों और सरकार के पिट्ठुओं से भरी है

मुजफ्फरपुर, बिफोर प्रिंट। संयुक्त किसान मोर्चा ने भारत सरकार द्वारा एमएसपी व अन्य कई मुद्दों पर बनाई गई समिति को सिरे से खारिज करते हुए इसमें कोई भी प्रतिनिधि नामांकित न करने का फैसला लिया है। प्रधानमंत्री द्वारा 19 नवंबर को तीन काले कानून रद्द करने की घोषणा के साथ जब इस समिति की घोषणा की गई थी, तभी से मोर्चा ने ऐसी किसी कमेटी के बारे में अपने संदेह सार्वजनिक किए हैं। मार्च के महीने में जब सरकार ने मोर्चे से इस समिति के लिए नाम मांगे थे तब भी मोर्चा ने सरकार से कमेटी के बारे में स्पष्टीकरण मांगा था, जिसका जवाब कभी नहीं मिला। 3 जुलाई को संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रीय बैठक ने सर्वसम्मति से फैसला किया था कि “जब तक सरकार इस समिति के अधिकार क्षेत्र और टर्म्स ऑफ रेफरेंस स्पष्ट नहीं करती तब तक इस कमिटी में संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि का नामांकन करने का औचित्य नहीं है।” सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन से इस कमेटी के बारे में संयुक्त किसान मोर्चा के सभी संदेह सच निकले हैं। जाहिर है ऐसी किसान-विरोधी और अर्थहीन कमेटी में संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि भेजने का कोई औचित्य नहीं है।

जब सरकार ने मोर्चा से इस समिति के लिए नाम मांगे थे तब उसके जवाब में 24 मार्च 2022 को कृषि सचिव को भेजी ईमेल में मोर्चा ने सरकार से पूछा था:
i) इस कमेटी के TOR (टर्म्स आफ रेफरेंस) क्या रहेंगे?
ii) इस कमेटी में संयुक्त किसान मोर्चा के अलावा किन और संगठनों, व्यक्तियों और पदाधिकारियों को शामिल किया जाएगा?
iii) कमेटी के अध्यक्ष कौन होंगे और इसकी कार्यप्रणाली क्या होगी?
iv) कमेटी को अपनी रिपोर्ट देने के लिए कितना समय मिलेगा?
v) क्या कमेटी की सिफारिश सरकार पर बाध्यकारी होगी?

सरकार ने इन सवालों का कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन कृषि मंत्री लगातार बयानबाजी करते रहे कि संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों के नाम न मिलने की वजह से कमेटी का गठन रुका हुआ है।

संसद अधिवेशन से पहले इस समिति की घोषणा कर सरकार ने कागजी कार्यवाही पूरी करने की चेष्टा की है। लेकिन नोटिफिकेशन से इस कमेटी के पीछे सरकार की बदनीयत और कमिटी की अप्रासंगिकता स्पष्ट हो जाती है:

  1. कमेटी के अध्यक्ष पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल हैं जिन्होंने तीनों किसान विरोधी कानून बनाए। उनके साथ नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद भी हैं जो इन तीनों कानूनों के मुख्य पैरोकार रहे। विशेषज्ञ के नाते वे अर्थशास्त्री हैं जो एमएसपी को कानूनी दर्जा देने के विरुद्ध रहे हैं।
    2.कमेटी में संयुक्त किसान मोर्चा के 3 प्रतिनिधियों के लिए जगह छोड़ी गई है। लेकिन बाकी स्थानों में किसान नेताओं के नाम पर सरकार ने अपने 5 वफादार लोगों को ठूंस लिया है जिन सबने खुलकर तीनों किसान विरोधी कानूनों की वकालत की थी। यह सब लोग या तो सीधे भाजपा-आरएसएस से जुड़े हैं या उनकी नीति की हिमायत करते हैं। कृष्णा वीर चौधरी, भारतीय कृषक समाज से जुड़े हैं और भाजपा के नेता हैं। सैयद पाशा पटेल, महाराष्ट्र से भाजपा के एमएलसी रह चुके हैं। प्रमोद कुमार चौधरी, आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य हैं। गुणवंत पाटिल, शेतकरी संगठन से जुड़े, डब्ल्यूटीओ के हिमायती और भारतीय स्वतंत्र पक्ष पार्टी के जनरल सेक्रेटरी हैं। गुणी प्रकाश किसान आंदोलन का विरोध करने में अग्रणी रहे हैं। यह पांचों लोग तीनों किसान विरोधी कानूनों के पक्ष में खुलकर बोले थे और अधिकांश किसान आंदोलन के खिलाफ जहर उगलने का काम करते रहे हैं।
  2. कमेटी के एजेंडा में एमएसपी पर कानून बनाने का जिक्र तक नहीं है। यानी कि यह प्रश्न कमेटी के सामने रखा ही नहीं जाएगा। एजेंडा में कुछ ऐसे आइटम डाले गए हैं जिन पर सरकार की कमेटी पहले से बनी हुई है। कृषि विपणन में सुधार के नाम पर एक ऐसा आइटम डाला गया है जिसके जरिए सरकार पिछले दरवाजे से तीन काले कानूनों को वापस लाने की कोशिश कर सकती है।

इन तथ्यों की रोशनी में संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा इस कमेटी में अपने प्रतिनिधि भेजने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। किसानों को फसल का उचित दाम दिलाने के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी हासिल करने के वास्ते संयुक्त किसान मोर्चा का संघर्ष जारी रहेगा।