त्वरित टिप्पणी : स्कूलों में हिजाब क्यों? यूनिफार्म क्यों नहीं…

Politics कानपुर

शबनम आदिल। कर्नाटक हाईकोर्ट की विशेष पीठ का हिजाब को लेकर फैसले पर मुझे नहीं लगता है कि कहीं से यह आपत्तिजनक है। बाकी तो अपना-अपना नजरिया है। हाईकोर्ट ने हिजाब पहनकर स्कूल आने की अनुमति संबंधी याचिकाकर्ताओं की सभी आठ याचिकाओं को खारिज कर दिया। मेरी दृष्टि में यह निर्णय उचित है। मैं तो कहती हूं कि जिन स्कूल कालेजों में यूनिफार्म लागू है वहां पर इसका पालन होना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि छात्राएं वही पहनकर स्कूल आएं और कक्षा में उपस्थित रहते हुए शिक्षा ग्रहण करें। हिजाब से कम से कम शिक्षण संस्थाओं को मुक्त रखना चाहिए। दरअसल कर्नाटक में हिजाब को लेकर विवाद एक जनवरी को शुरू हुआ था।

कर्नाटक के उड्डपी में 6 मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण कालेज में कक्षा में बैठने से रोक दिया गया था। कालेज प्रबंधन ने नयी यूनिफार्म पॉलिसी को इसकी वजह बताया। इसके बाद इनकी ओर से कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी। इन लड़कियों का तर्क है कि हिजाब पहनने की इजाजत न देना संविधान के आर्टिकल 14 और 25 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। मुस्लिम लड़कियां, महिलाएं यदि घर से बाहर बाजार आदि को जाती हैं तो हिजाब पहनकर जाना चाहिए। कर्नाटक हाईकोर्ट का यह फैसला स्वागत योग्य है। छात्राओं को धर्म जाति में विभाजित करके देखना कोई अच्छी बात तो नहीं है। स्कूल कालेजों को तो इबादतगाह के रूप में देखा जाना चाहिए।

हिजाब के विवाद में छात्राओं का बहुत समय बर्बाद हुआ। इस पूरे प्रकरण पर धर्म को नहीं जोड़ा जाना चाहिए। माननीय हाईकोर्ट को भी इस्लामी आस्था संबंधी टिप्पणी से बचना चाहिए। यह सही है कि स्कूल की यूनिफार्म का निर्धारण एक उचित प्रबंधकीय व्यवस्था है जो यह निर्धारित करती है कि सभी जाति धर्म की छात्राएं स्कूल आने पर एक हैं शिक्षा ग्रहण करना ही उनका उद्देश्य है। अब इस पर भी आपत्ति मेरी समझ से परे है। हाईकोर्ट ने भी इसी नजरिये से फैसला सुनाया है कि स्कूल में हिजाब को प्रतिबंधित करने का पांच फरवरी 2022 को जारी आदेश को अमान्य करने का मामला नहीं बनता है। सरकारें यह सुनिश्चित करें तो शांति भंग की नौबत न आए।

बच्चों के भविष्य पर आंच नहीं आनी चाहिए। हाईकोर्ट ने हालांकि यह बात कही है कि दो बातों पर गौर करने की महती आवश्यकता है। नंबर एक क्या हिजाब पहनना आर्टिकल 25 के तहत धार्मिक आजादी के अधिकार में आता है। नंबर दो- क्या स्कूल यूनिफार्म पहनना इस आजादी का हनन है। शायद इसी नजरिये से कोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाया है। आपको बता दें कि लगभग तीन साल पहले भी हिजाब को लेकर स्कूल में विवाद हुआ था तब भी फैसला लिया गया था कि कोई हिजाब पहनकर नहीं आएगा, लेकिन पिछले कुछ दिनों से स्टूडेंट्स हिजाब पहनकर स्कूल आने लगीं।

इसका विरोध करते हुए कुछ स्टूडेंट्स ने भगवा पहनने का फैसला किया था। यह खामखां मामले को तूल देने वाली बात लगती है जिसका शिक्षा क्या लेना-देना। यूनिफार्म तय करना स्कूल का काम है। बीते 74 दिनों से चल रहे इस मामले में हाईकोर्ट ने हिजाब के समर्थन में मुस्लिम लड़कियों समेत दूसरे लोगों की तरफ से लगाई गईं सभी 8 याचिकाएं खारिज कर दीं। चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित और जस्टिस खाजी जयबुन्नेसा मोहियुद्दीन की तीन मेंबर वाली बेंच ने राज्य सरकार के 5 फरवरी को दिए गए आदेश को भी निरस्त करने से इनकार कर दिया, जिसमें स्कूल यूनिफॉर्म को जरूरी बताया गया था। अब इस पर नये सिरे से सामाजिक बहस शुरू हो गयी है।

पूरा मामला देखने पर यह लगता है कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले पर तीन खास बातों पर फोकस किया है। पहली तो यह कि स्कूल कालेजों में पढ़ने वाले यूनिफार्म पहनने से मना नहीं कर सकते। दूसरे हर स्कूल कालेज को अपनी यूनिफार्म तय करने का अधिकार है। तीसरा हाईकोर्ट ने हिजाब पर दायर याचिकाएं रद्द कर दी। पहली याचिका आर्टिकल 226 व 227 के तहत हिजाब समेत धार्मिक प्रथाओं में दखल न देने की मांग से संबंधित थी तो दूसरी अदामिक गाइड लाइंस के उल्लंघन पर जांच की मांग पर थी और तीसरी और चौथी कालेज की तरफ से यूनिफार्म पहनकर आने के आदेश पर रोक को लेकर थी। इसी तरह पांच, छह और सातवीं याचिका थी जिसे खारिज किया गया।
(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता हैं और पेशे से वकील हैं)