श्रीबाबू और बिहार विषयक संवाद आयोजित राजनीति में सूचिता और पारदर्शिता के प्रतीक थे बाबू श्रीकृष्ण सिंह- पूर्व मंत्री उषा सिन्हा

मुजफ्फरपुर

श्रीबाबू और बिहार विषयक संवाद में श्रीबाबू संस्कृति सम्मान से विभूषित हुए 10 संस्कृति कर्मी

Muzaffarpur/Beforeprint: बिहार केसरी डॉ श्रीकृष्ण सिंह की जयंती के परिप्रेक्ष्य में जेके रेसिडेंसी होटल के सभागार में मिशन भारती एवं बिहार गुरु के तत्वावधान में आज बिहार केसरी टॉक के अंतर्गत श्रीबाबू और बिहार विषयक संवाद का आयोजन किया गया। दीप प्रज्वलन तथा श्रीबाबू के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद अपने उद्घाटन संबोधन में वरिष्ठ राजनीतिज्ञ, समाज सेविका तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री उषा सिन्हा ने कहा कि राजनीति में पवित्रता और पारदर्शिता श्रीबाबू के शासनकाल की सबसे बड़ी विशेषता थी। वे बड़े राजनेता से ज्यादा स्वतंत्रता सेनानी, चिंतक, विचारक और बिहार के दृढ़ संकल्पी निर्माता थे। बिना किसी भेदभाव के वे विकास का काम निरंतर करते रहे। उन्होंने कभी गलत से समझौता नहीं किया।

कई संस्मरणों के माध्यम से उषा सिन्हा ने श्रीबाबू के पारिवारिक, सामाजिक और अंतरंग व्यक्तित्व को भी प्रस्तुत किया। उन्होंने तेजी से बिहार में चतुर्दिक विकास की धारा बहाई। मुख्य अतिथि बीएन मंडल विश्वविद्यालय के भूतपूर्व कुलपति डॉ रिपुसूदन श्रीवास्तव ने जोरदार स्वर में श्रीबाबू के लिए भारत सरकार से भारत रत्न की मांग करते हुए कहा कि वे बड़े अध्ययनशील, गंभीर और पराक्रमी राजनेता तथा ओजस्वी वक्ता थे। आज बिहार का वैभव कहीं खो गया- सा लगता है, जिसे वापस लाने के लिए श्रीबाबू जैसे कर्मठ, निष्ठावान और ईमानदार नेतृत्व की जरूरत है। वे न्यायप्रिय थे। बिहार के सारे क्षेत्र और सारे लोग उनके अपने थे। वे किसी भेदभाव को प्रश्रय नहीं देते थे। अध्यक्षीय उद्गार में साहित्यकार डॉ संजय पंकज ने कहा कि डॉ श्रीकृष्ण सिंह जातिवाद और परिवारवाद के विरोधी थे। बैद्यनाथधाम के मंदिर में दलितों का नेतृत्व करते हुए उन्होंने उनका प्रवेश कराया था।

जमींदारी व्यवस्था को समाप्त किया और बिहार में कल कारखानों का जाल बिछा दिया। अखंड बिहार के लोकप्रिय मुख्यमंत्री के साथ ही वे एक सांस्कृतिक पुरुष, विभिन्न ज्ञान- धाराओं के अध्येता तथा संवेदनशील मनुष्य थे। श्रीबाबू सबके थे और सब उनके थे। आज जात -पात में बंटे हुए बिहार में अगर कोई उन्हें जातीय चश्मे से देखता है तो यह उनके प्रति अन्याय है। डॉ एचएन भारद्वाज, पंडित विनय पाठक तथा डॉ देवव्रत अकेला ने श्रीबाबू के समय को श्रेष्ठ बताते हुए आज के राजनेताओं को उनसे प्रेरित होने पर बल दिया। स्वागत संबोधन में अविनाश तिरंगा उर्फ ऑक्सीजन बाबा ने कहा कि बिहार केसरी टॉक लगातार तीन दिनों तक चलेगा और इसमें श्रीबाबू की उपलब्धियों की चर्चा होगी।

आयोजन में स्वाधीन दास, इंदु बाला शर्मा, डॉ राकेश कुमार मिश्र, प्रेम रंजन, सोहन अग्रवाल, डॉ शिव शंकर मिश्रा, गोपाल फलक, प्रमोद आजाद, अजय विजेता, रॉबिन रंगकर्मी आदि दस संस्कृतिकर्मियों को अंग वस्त्र स्मृति चिन्ह, सम्मान पत्र देकर श्री बाबू संस्कृति सम्मान से विभूषित और सम्मानित किया गया। सर्वश्री मान मर्दन शुक्ला, देवांशु किशोर,पवन सिंह, शंभूनाथ चौबे, राजीव रंजन, सुनील साह, भोला चौधरी, प्रेमभूषण, संजीव रंजन, महंत मृत्युंजय दास, प्रणव झा, रामप्रवेश सिंह, डॉ विजयेश कुमार, अजय सिंह विशाल कुमार, संजय मयंक, महेश चौधरी, कुमार विभूति, सुनील कुमार,अखिलेश राय, श्यामल श्रीवास्तव, सोनी तिवारी, सोनू सिंह, आकाश वर्मा, गणेश प्रसाद सिंह, सतीश साथी, लखन लाल रमण, विजय पांडेय, मोहम्मद नाज, हसन, अभ्युदय शरणआदि सैकड़ों लोगों की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही और सब ने अपने भाव व्यक्त किए।

धन्यवाद ज्ञापित करते हुए मुकेश त्रिपाठी ने कहा कि आज डॉ श्रीकृष्ण सिंह जैसे विकासशील राजनेता की जरूरत है। आभार व्यक्त करते हुए पवन सिंह ने कहा कि श्री बाबू बिहार के ही नहीं भारत के गौरव थे। उपस्थित सारे लोगों ने एक स्वर से श्री बाबू को भारत रत्न से सम्मानित करने के लिए केंद्र सरकार से मांग की।