चंपारण : पुरुष के चंद्रमा मन है ,ब्रह्मा बुद्धि हैं, विष्णु चित्त हैं और शिव अहंकार

मोतिहारी

मोतिहारी / राजन द्विवेदी। नरसिंह बाबा मंदिर परिसर में नौ दिवसीय रामचरितमानस यज्ञ एवं श्रीराम कथा के पांचवे दिवस का आगाज बांदा चित्रकूट से पधारे संगीत मंडली के भगवत भजन से हुआ। जिसके बाद मानस रत्न डॉक्टर रामगोपाल तिवारी जी ने जनकपुर के पुष्पवाटिका प्रसंग से राम कथा का प्रारंभ किया। रामचरितमानस में वर्णित इस प्रसंग की चर्चा करते हुए बताया कि राम ज्ञान है, लक्ष्मण जी वैराग हैं, और सीता जी माया है, और माया पर कामदेव का प्रभाव है।

ऐसी स्थिति में केवल ज्ञान के बल पर काम को नहीं दबाया जा सकता। उसके लिए वैराग का आश्रय लेना पड़ता है। इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए अपने मन के काम पर क्षोभ को बैराग के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। उन्होंने बताया कि लोभ और काम पर विजय प्राप्त करने के लिए त्याग और वैराग्य की आवश्यकता पड़ती है। सुविज्ञ कथा वाचक ने शिव के धनुष का अर्थ प्रस्तुत करते हुए बताया की अंतः चतुष्टय में विराट पुरुष के चंद्रमा मन है ,ब्रह्मा बुद्धि हैं, विष्णु चित्त हैं, तथा शिव अहंकार होते हैं।

जबकि भक्ति के प्रदाता भी भगवान शिव हैं। कथा को समापन की ओर ले जाते हुए महाराज जी ने कहा कि भगवान राम अपने जीवन लीला में स्वयं विशेष कुछ नहीं किया, बल्कि सिर्फ जहां भी गए बड़ों को प्रणाम करके आशीर्वाद प्राप्त किया और मर्यादापुरुषोत्तम बन गए। रामकथा का मंच संचालन प्रोफेसर रामनिरंजन पांडेय ने किया। मौके पर भोलानाथ सिंह, अवधकिशोर द्विवेद्वी, कामेश्वर सिंह,संजय कुमार तिवारी, ठाकुर साह, अरुण प्रसाद आदि उपस्थित रहे।ं